भारत की विविधता और सांस्कृतिक धरोहर की बात करें, तो हमारे देश की जनजातियाँ अपनी अनूठी पहचान के साथ इस धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। इन जनजातियों में मुण्डा जनजाति विशेष स्थान रखती है। उनकी रीति-रिवाज और परंपराएं न केवल उनके जीवन का हिस्सा हैं, बल्कि उनकी संस्कृति की गहराइयों को भी दर्शाती हैं। आज हम मुण्डा जनजाति की अनोखी रीति-रिवाजों और परंपराओं के बारे में जानेंगे, जो हमें उनकी जीवन शैली को समझने का अवसर देती हैं।
मुण्डा जनजाति का परिचय
मुण्डा जनजाति मुख्यतः झारखंड, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल और बिहार में निवास करती है। इनकी भाषा मुण्डारी है, जो ऑस्ट्रोएशियाटिक भाषा परिवार से संबंधित है। मुण्डा जनजाति का इतिहास कई सदियों पुराना है, और यह समुदाय अपनी सांस्कृतिक धरोहर के लिए प्रसिद्ध है।
मुण्डा जनजाति की सामाजिक संरचना बहुत ही संगठित होती है। इनके समाज में गांव प्रमुख होता है, जिसे ‘मानकी’ कहा जाता है। ‘मानकी’ का कार्य गांव की समस्याओं का समाधान करना होता है और वह सामाजिक और धार्मिक कार्यों का संचालन करता है।
मुण्डा समुदाय का जीवन प्रकृति के साथ गहरा जुड़ा होता है। वे जंगलों, नदियों और पहाड़ों को पवित्र मानते हैं और उनकी पूजा करते हैं। उनकी अधिकांश आजीविका कृषि पर निर्भर होती है, और वे अपने खेतों में पारंपरिक तरीके से खेती करते हैं।
मुण्डा जनजाति की संस्कृति उनकी भाषा, संगीत, नृत्य और रीति-रिवाजों में झलकती है। इनके लोकगीत और नृत्य उनकी संस्कृति का अहम हिस्सा हैं, जिनमें उनकी जीवन शैली और मान्यताओं की झलक मिलती है।
मुण्डा रीति-रिवाजों की विशेषताएँ
मुण्डा जनजाति के रीति-रिवाज उनके जीवन के हर पहलू को दर्शाते हैं, चाहे वह जन्म हो, विवाह हो, या मृत्यु। उनके रीति-रिवाजों में प्रकृति के प्रति आदर और समुदाय की एकजुटता की भावना दिखाई देती है।
जन्म के समय, मुण्डा जनजाति में ‘जन्मोत्सव’ मनाया जाता है। यह एक सामूहिक उत्सव होता है, जिसमें पूरे गांव के लोग शामिल होते हैं। इसमें नवजात शिशु को आशीर्वाद देने के लिए विशेष पूजा की जाती है और गीत-नृत्य का आयोजन होता है।
विवाह के समय, मुण्डा जनजाति में ‘जायन’ नामक रस्म होती है। इस रस्म में दूल्हा और दुल्हन के परिवार मिलकर एक-दूसरे को उपहार देते हैं और समुदाय के सामने अपनी सहमति व्यक्त करते हैं। यह एक रंगीन और हर्षोल्लास से भरा अवसर होता है, जिसमें सभी मिलकर नाचते-गाते हैं।
मृत्यु के समय, मुण्डा जनजाति में ‘पितृ तर्पण’ की रस्म होती है। इसमें मृतक की आत्मा की शांति के लिए विशेष पूजा की जाती है और पूरे गांव के लोग मिलकर उसे विदाई देते हैं। यह रस्म समुदाय की एकजुटता और आपसी सहयोग को दर्शाती है।
मुण्डा त्योहारों की धूम
मुण्डा जनजाति के त्योहार उनकी धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। इनमें से कई त्योहार कृषि से जुड़े होते हैं, जो फसल की कटाई और बोवाई के समय मनाए जाते हैं।
‘सरहुल’ मुण्डा जनजाति का प्रमुख त्योहार है, जो वसंत ऋतु में मनाया जाता है। इस त्योहार में पेड़ों की पूजा की जाती है और प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त किया जाता है। इसमें सामूहिक नृत्य और गीतों का आयोजन होता है, जो समुदाय की एकजुटता को दर्शाता है।
‘माघ परब’ भी एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जो फसल की कटाई के बाद मनाया जाता है। इस अवसर पर लोग अपने पूर्वजों को याद करते हैं और उनके प्रति आभार व्यक्त करते हैं। इसमें पारंपरिक भोजन बनाया जाता है और सामूहिक भोज का आयोजन होता है।
‘करमा’ त्योहार भी मुण्डा जनजाति के लिए महत्वपूर्ण है। यह त्योहार भाई-बहन के रिश्ते को समर्पित होता है। इसमें बहनें अपने भाइयों की लंबी उम्र की कामना करती हैं और भाई उनकी सुरक्षा का वचन देते हैं।
मुण्डा संस्कृति का महत्व
मुण्डा जनजाति की संस्कृति उनकी पहचान का आधार है। उनकी रीति-रिवाज और परंपराएं उन्हें अन्य समुदायों से अलग बनाती हैं। यह संस्कृति उनके जीवन में एक विशेष स्थान रखती है और उन्हें अपनी जड़ों से जोड़ती है।
मुण्डा जनजाति की संस्कृति में प्रकृति के प्रति गहरा सम्मान दिखाई देता है। उनकी परंपराएं हमें सिखाती हैं कि कैसे हम प्रकृति के साथ सामंजस्य में रह सकते हैं। उनके त्योहार और रीति-रिवाज हमें सामूहिकता और आपसी सहयोग की भावना को समझने का अवसर देते हैं।
मुण्डा जनजाति की संस्कृति के संरक्षण की आवश्यकता है, क्योंकि यह हमारी सांस्कृतिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसके संरक्षण से हम आने वाली पीढ़ियों को अपनी जड़ों से जोड़ सकते हैं