भारतीय इतिहास की गहराइयों में कई ऐसे राजवंश हैं जिन्होंने समय-समय पर अपनी छाप छोड़ी है। उनमें से एक है विजयनगर साम्राज्य, जो अपनी अद्वितीय स्थापत्य कला, संस्कृति, और समृद्ध इतिहास के लिए विख्यात है। यह साम्राज्य न केवल शक्ति का प्रतीक था बल्कि कला और संस्कृति का भी केंद्र था। आइए जानते हैं इस गौरवशाली साम्राज्य के बारे में विस्तार से।
विजयनगर साम्राज्य की स्थापना
विजयनगर साम्राज्य की स्थापना 1336 में हरिहर और बुक्का ने की थी। ये दोनों भाई संगम वंश के सदस्य थे और पहले काकतीय राजाओं के अधीन सेवा करते थे। लेकिन जब दिल्ली सल्तनत के खिलजी वंश ने दक्षिण भारत में अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश की, तो हरिहर और बुक्का ने विजयनगर साम्राज्य की नींव रखी।
यह साम्राज्य तुंगभद्रा नदी के दक्षिणी तट पर स्थित था। अपनी स्थापना के कुछ ही वर्षों के भीतर, विजयनगर साम्राज्य ने पूरे दक्षिण भारत में अपनी शक्ति का विस्तार किया और एक महत्वपूर्ण साम्राज्य बना। इसके संस्थापक हरिहर और बुक्का ने धर्म और संस्कृति को बढ़ावा देने का कार्य किया, जिससे यह साम्राज्य हिंदू धर्म के पुनरुत्थान का केंद्र बन गया।
विजयनगर साम्राज्य की प्रारंभिक रणनीतियों में से एक थी स्थानीय राजाओं के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित करना। इसने उन्हें क्षेत्रीय स्थिरता और साम्राज्य के विस्तार में मदद की। इनके शासनकाल में विजयनगर साम्राज्य ने आर्थिक और सांस्कृतिक रूप से बड़ी प्रगति की।
संरचना और प्रशासन के मामले में, विजयनगर साम्राज्य ने अपने समय के सबसे कुशल और संगठित प्रशासनिक तंत्र का विकास किया। यह साम्राज्य न केवल राजनीतिक रूप से सशक्त था, बल्कि आर्थिक रूप से भी समृद्ध था, जिसने इसे दक्षिण भारत में एक प्रमुख शक्ति बनाया।
कला और संस्कृति का स्वर्णिम युग
विजयनगर साम्राज्य का समय कला और संस्कृति के लिए स्वर्णिम युग माना जाता है। इस अवधि में स्थापत्य कला का अद्वितीय विकास हुआ। हम्पी की विशाल मंदिर संरचनाएं और पत्थरों पर की गई नक्काशी इस बात का जीवंत उदाहरण हैं। हम्पी को आज भी विश्व धरोहर स्थल के रूप में पहचाना जाता है।
संगीत और नृत्य का भी इस समय में अपार विकास हुआ। विजयनगर के दरबार में संगीतकारों और नर्तकों को विशेष महत्व दिया जाता था। इस समय कार्नाटक संगीत का प्रचलन बढ़ा और यह दक्षिण भारत में लोकप्रिय हो गया।
साहित्यिक दृष्टि से भी यह काल बेहद समृद्ध था। संस्कृत और तेलुगु भाषा में अनेक ग्रंथों की रचना की गई। कृष्णदेवराय, जो विजयनगर साम्राज्य के सबसे प्रसिद्ध शासकों में से एक थे, स्वयं एक कवि और साहित्य प्रेमी थे। उनके दरबार में ‘अष्ट दिग्गज’ नामक आठ महान कवि थे, जिन्होंने तेलुगु साहित्य को समृद्ध किया।
विजयनगर साम्राज्य में वास्तुकला, संगीत, नृत्य और साहित्य का विकास एक नई ऊंचाई पर पहुंचा। इसने दक्षिण भारत की सांस्कृतिक विरासत को सशक्त किया और इसे दुनिया भर में प्रसिद्ध किया।
विजयनगर साम्राज्य की सैन्य शक्ति
विजयनगर साम्राज्य की सैन्य शक्ति के मामले में भी बेहद प्रभावशाली था। इसकी सेना अत्यधिक संगठित और अनुशासित थी। विजयनगर की सैन्य ताकत का मुख्य उद्देश्य अपने साम्राज्य की रक्षा और विस्तार करना था।
सैन्य शक्ति के साथ-साथ साम्राज्य की जल सेना भी बेहद मजबूत थी। तटीय क्षेत्रों में विजयनगर साम्राज्य की नौसेना ने अपनी अहम भूमिका निभाई। समुद्री व्यापार और समुद्री सुरक्षा के लिए यह नौसेना महत्वपूर्ण थी।
कृष्णदेवराय के शासनकाल में विजयनगर की सैन्य शक्ति अपने चरम पर थी। उन्होंने कई विजय अभियानों का नेतृत्व किया और साम्राज्य के क्षेत्र को बढ़ाया। उनकी सैन्य रणनीतियों और युद्ध कौशल ने विजयनगर साम्राज्य को दक्षिण भारत की सबसे बड़ी शक्ति बना दिया।
सैन्य दृष्टि से, विजयनगर साम्राज्य ने योद्धाओं और सैनिकों के प्रशिक्षण पर विशेष ध्यान दिया, जिससे उनकी सेना दूसरी सेनाओं की तुलना में अधिक कुशल और सक्षम थी।
विजयनगर साम्राज्य का पतन

विजयनगर साम्राज्य का पतन उतनी ही तेजी से हुआ जितनी तेजी से इसका उदय हुआ था। 1565 में तालीकोटा की लड़ाई में विजयनगर की सेना को दक्कन सल्तनतों द्वारा पराजित किया गया। इस लड़ाई ने विजयनगर साम्राज्य की नींव को हिला दिया।
तालीकोटा की लड़ाई में हुई हार ने विजयनगर साम्राज्य को न केवल राजनीतिक रूप से कमजोर किया, बल्कि आर्थिक दृष्टि से भी इसे भारी नुकसान हुआ। इसके बाद का समय साम्राज्य के विघटन और आंतरिक कलह का था।
हालांकि, विजयनगर साम्राज्य के पतन के बावजूद, इसकी सांस्कृतिक और स्थापत्य विरासत आज भी जीवित है। हम्पी की खंडहर और वहां की कला आज भी इतिहास प्रेमियों को आकर्ष








